Wednesday, April 24, 2013

Darr k aage jeet hai

आखिर ये क्या है जो पल पल मुझे कचोटता है।
शायद ये कोई डर है जो मेरी सफलता को रोकता है।

महीनो बीत गए , सालो बीत गए।
डर डर के जीती रही मै , लगा के अरसे बीत गए।

फिर एक दिन गुरुवाणी मिली ,
मैंने जाना की आखिर कौनसा ये डर है,
जो मेरी सफलता को रोकता है।

ये डर नहीं है परीक्षा का ,
ना ही उसके परिणाम का,
ये डर है, लोगो का,
उनके अरमानो का, उनकी उम्मीदों का।

सोचती थी, क्या कहेंगे लोग जो फिर से असफल हुई।
बुद्धिहीन समझेंगे , जो फिर से असफल हुई।

गुरूजी बोले, उखाड़ फेको इस डर को , और भाड़ में जाने दो , उन लोगो को ,
तुम ही सर्वोत्तम हो,
इस बात को जानो और मानो।

फिर मुझे आत्मज्ञान हुआ,
और जल दिए उस डर को,
अब लड़ रही हुँ , खुद से
की वो डर फिर से ना आने पाये
और मेरे भविष्य को,
और ना जला पाये
और ना जला पाये 

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